Saturday 19 September 2015

First Day

हमारे जीवन मे अनेक घटनाए होती है जो बड़े हो कर भी हमको याद रहेती है और हम को प्रसन करती है. ऐसी ही घटना मे आपके साथ बटाने जा रहा हू. वो जून का महीना था सुबह सुबह मैं तयियर हो कर आपनी मा के साथ, हाथ मे पानी की बोतल लिए और पीठ पर किताब का बसता लिया जा रहा . मा खुश थी की मेरा बेटा आपने जीवन के एक नये चरण मे प्रवेश करने जा रहा है. हम दोनो घर से कुछ दूर जाकर  बस स्टॅंड के पास रुक गये. मा ने मुझसे बोला  बस! हम लोग को यही आना था, यही से हे मोटर मिलेगी. फिर थोड़ी देर बाद एक लाल मोटर हम को आती देखी. वह मोटर ह्मारे सामने आकर खड़ी हो गयइ. मेरी मा ने मुझे देखा जैसे बोल रही हो की बेटा तुम्हारा घर मे कखेलने का टाइम ख़तम हो गया है. अब! पढ़ी करने की बारी है. मेरी आखो मे भी स्कूल जाने की पीड़ा देखी जा सकती थी. मेरी आखो से जैसे आवाज़ निकल रही हो मा मे अभी छोटा हू. मैं तुम से दोर न्ही जा सकता मुझे आपने  पास ही रहने दो. पर ऐसा क्च न्ही हुआ मा ने मुझको बस मे चड़ा दिया. बस मे मुझे एक बड़ा सा आदमी दिखा. उस आदमी ने मुझ ज़ोर से आपने पास सीट पर दल दिया. वह आदमी बस का सहायक था. उसका काम बस मे बाचो का ध्यान रखना था. थोड़ी हे देर मे, मैं सभी बाचो के साथ गुल मिल ग्यंएरि जीवन मे जैसे कोई न्यी शक्ति आ गयइ थी और मैं उड़ान भरने को रेडी था.

No comments:

Post a Comment